Posted by edit-rj on 2023-07-30 19:27:51 | Last Updated by admin on 2024-12-23 05:24:52
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गूजर भाइयों द्वारा राजपूतों को भेजे गए प्रश्न और नीचे राजपूतों द्वारा उनका उत्तर*
हमारे राजपुत्र भाइयों से मेरे कुछ सवाल है उम्मीद करता हूं सभ्यता के दायरे में रहकर जवाब दें
1 गुर्जरात्रा का नाम गुर्जरात्रा क्यों पड़ा?
2 राजस्थान को राजपूताना क्यों कहा गया
4 मराठा वड़ा को मराठवाड़ा क्यों कहा जाता है
5। बुंदेल खंड को बुंदेल खंड क्यों कहा गया
6 क्षत्रिय वर्ण है या जाति
7 1200 ईसवी से पहले कहीं राजपूत जाति का उल्लेख कहां कहां मिलता है
8 क्षत्रिय अगर वर्ण है तो क्या उसपर आधुनिक राजपूत जाति का ही एकाधीर है क्या
9 क्या राजपूत जाति के अलावा किसी और जाती के किसी राजा ने कभी इस देश पर शासन नही किया
10 अगर शासन किया है तो वो वैदिक वर्ण व्यवस्था के अनुसार कोंसे वर्ण का राजा हुआ राजपूत या क्षत्रिय?
12 क्या किसी शिलालेख या अभिलेख में सम्राट मिहिरभोज ने अपने आपको राजपूत लिखा है
13 अगर नही तो आप अपने दावे को सही और गुर्जरों के दावे को गलत क्यों किस आधार पर कहते हो
14 पूरे हिंदुस्तान में राजपूत समाज ने महाराणा प्रताप जी के स्मारक हर सहर गांव में स्थापित किए 2021 से पहले 1 भी स्मारक पूरे हिंदुस्तान में अगर गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिरभोज का स्थापित किया हो तो उसकी जानकारी साझा कीजिए
15 जमुना और यमुना, राजपूत या राजपूत्र, कुरुक्षेत्र और कुलक्षेत्र, गुर्जर और गुज्जर अलग अलग शब्द है या एक ही है
उम्मीद करता हूं बिंदुवार एक एक सवाल का आप ईमानदारी से जवाब देंगे
गूजर भाइयों के ऊपर के प्रश्नों के उत्तर:-
1- गुर्जर शब्द का प्रयोग जाति के परिपेक्ष्य में नहीं है। गुर्जर संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ शत्रु का नाश करने वाला वीर है, जोकि शत्रु का नाश करने वाली गुर्जरत्रा धरती का योद्धा है और वह योद्धा क्षत्रिय है।
जबकि "गूजर" जाति शब्द गोचर शब्द का अपभ्रंश है। गोचर का अर्थ गाय चराने वाला व्यक्ति। गूजर कहे जाने वाले व्यक्ति पुराने समय में भी गाय चराते थे और आजकल भी बड़े पैमाने पर उनका दूध का ही कार्य है। यही बात सिद्ध करती है की गूजर भाई गोचर हैं, न कि गुर्जर। गूजर भाइयों ने अपनी शिक्षण संस्थाओं पर भी जातिय दृष्टि से "गोचर" शब्द का ही प्रयोग किया हुआ है जो कि उनका गूजर होने का स्वतः प्रमाण है।
यदि गुर्जर शब्द गूजर जाति से संबंधित होता तो फिर क्षत्रिय गुर्जरेश्वर सम्राट नागभट्ट प्रतिहार अपने अभिलेख में यह नहीं लिखवाता कि मैंने अपने राज्य के आखरी गांव के गूजरों को भी मार भगाया है।
इसलिए क्षत्रिय वीरों की गुर्जर- गुर्जरेश्वर उपाधि के परिप्रेक्ष्य में उनके स्थान का नाम गुर्जरत्रा दिया गया है। और उस धरती पर राज करने वाले क्षत्रिय राजाओं को गुर्जरेश्वर, गुर्जरेन्द्र गुर्जरराज शब्दों से संबोधित किया गया है। यह शब्द जातिवाचक नहीं है बल्कि राजा के लिये गुर्जरत्रा धरती का शासक होने के कारण उपाधि बोधक शब्द हैं। यदि जाति के नाम से इस प्रकार शब्द बोध देते तो फिर आपको क्षत्रियेश्वर क्षत्रियेन्द्र क्षत्रियराज राजपूतेश्वर राजपूतेन्द्र राजपूतराज शब्द भी राजाओं के लिए संबोधन में मिलते जबकि सारे इतिहास में कहीं पर भी ये शब्द नहीं हैं।
एक उदाहरण और भी है एक जाति का नाम है मीना तथा एक अन्य दूसरी जाति का नाम है मीणा दोनों जातियों के नाम बिल्कुल समीप हैं, किंतु हैं अलग-अलग। सरकार ने मीना जाति को आरक्षण दिया था, किंतु अंग्रेजी में दोनों जातियों की स्पेलिंग एक समान होने से उस आरक्षण का फायदा मीणा लोगों ने भी उठा लिया। बाद में यह बात पकड़ में आई और उस पर आगामी कार्रवाई चालू की गई।
तो गुर्जर और गूजर इन दोनों शब्दों का सामीप्य होने के कारण ही गूजर भाई लोग इतिहास चोरी में गुर्जर शब्द का लाभ उठाने की फिराक में है। जो कि एकदम अनुचित है। फिर कहता हूं कि गुर्जर शब्द जातिवाचक नहीं है, क्षत्रियों द्वारा "शत्रु विनाशक" की विशेषता का वाचक है, जबकि गूजर शब्द जातिवाचक है
2-5 तो शत्रु विनाशक गुर्जर शब्द से जिस प्रकार गुर्जरत्रा क्षेत्र बना उसी प्रकार मराठा वीरों से मराठवाड़ा, राजपूतों से राजपूताना और राजपूतों के बुंदेला वंश से बुंदेलखंड कहाता है। राजपूताना क्षेत्र केवल राजस्थान तक सीमित नहीं था इसमें हरियाणा उत्तर प्रदेश हिमाचल जम्मू कश्मीर मध्य प्रदेश गुजरात इत्यादि कितने ही प्रदेश सम्मिलित थे। तो इतना विशाल था राजपूताना क्षेत्र।
6- क्षत्रिय एक वर्ण है। 14वीं सदी से मुसलमानों द्वारा क्षत्रियों को राजपूत कहने के प्रचलन के कारण राजपूत शब्द, क्षत्रिय शब्द का पूरक और पर्यायवाची शब्द बनना प्रारंभ हुआ। सिर्फ और सिर्फ राजपूत ही क्षत्रिय हैं, यह महेंद्रगढ गैजेटियर 1988 रिप्रिंट प्रकाशन पृष्ठ 67 और 68 में स्पष्ट है। वहां गूजर जाट अहीर जातियां अलग से उनके व्यवसाय के हिसाब से लिखी हुई हैं, उन्हें क्षत्रिय नहीं बताया गया है ।
सनातन संस्कृति और व्यवस्था के सबसे बड़े जानकार और व्याख्याता महर्षि दयानंद जी हुए हैं उन्होंने वेद में जहां क्षत्रिय, राजसु या राजन्य शब्द आया उसका अर्थ राजपूत ही किया है, देखें उनका यजुर्वेद भाष्य अध्याय 18 मंत्र 48।
इसलिए केवल राजपूत ही क्षत्रिय हैं।
7- 1200 ई.से पहले प्रत्येक प्राचीन साहित्य में राजपूत जाति को क्षत्रिय ही लिखा गया है। हां अंग्रेजों नेहरू- नेहरूवादियों और कम्युनिस्टों ने मिलकर बाद में शरारतवश हर्षवर्धन के बाद 647 ईस्वी से 1200 ईसवी तक के काल को अब तक विद्यालयों में राजपूत काल के नाम से पढ़ाया है ताकि राजपूतों को क्षत्रिय से काट कर एक अलग जाति घोषित की जा सके जिससे राजपूत अपने को अधिक गौरवशाली न समझते रहे और इनका संबंध राम और कृष्ण से भी कट जाए।
जिसमें राजपूतों के चार मुख्य वंश प्रतिहार चौहान परमार और चालुक्य पर प्रमुखता से लेख हैं वहां भी सम्राट मिहिर भोज को राजपूत प्रतिहार वंश के अंतर्गत लिखा गया है।
8- हां क्षत्रिय वर्ण पर राजपूत जाति का ही एकाधिकार है यह बात ऊपर स्पष्ट की जा चुकी है।
9-10, कुछेक दूसरी जाति के राजाओं ने किया है। वैदिक वर्ण व्यवस्था में क्षत्रिय राजा ही राज कर रहे थे। उस व्यवस्था का बहुत बाद में जातियों में ही रूढ़ हो जाने से दूसरी जातियों के राजा अपनी ही जाति के राजा कहे गए न कि क्षत्रिय कहे गए।
11- यह क्रमांक प्रश्नो में दिया नहीं गया
12- हां सम्राट मिहिर भोज क्षत्रिय थे ग्वालियर प्रशस्ति में उन्हें इक्ष्वाकु वंशी लिखा गया है और इक्ष्वाकु एक महान क्षत्रिय शासक थे। सम्राट मिहिर भोज के समय में क्षत्रिय जाति शब्द प्रचलित था तब इसे राजपूत जाति नहीं कहा जाता था।
फिर भी 647 से 1200 तक के सरकारी इतिहास में सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार को राजपूत पढ़ाया गया है। वे क्षत्रिय थे इसीलिए तो उन्हें राजपूत पढ़ाया गया।
13- हमारा दावा बिल्कुल सही है तथ्यों पर आधारित है, गूजर भाई लोग गलत कदम उठा रहे हैं।
14- महाराणा प्रताप एक ऐसा शूरवीर निकला जो किसी लालच अथवा भय के अधीन नहीं हुआ। यूं तो सिरोही के सुरताण देवड़ा और जोधपुर के राव चंद्रसेन राठौड़ तथा पांच अन्य राज्यों जालौर डूंगरपुर बांसवाड़ा ईडर और प्रतापगढ़ के शासकों ने भी अकबर की कभी अधीनता स्वीकार नहीं की। प्रताप का नाम विशेष इसलिए चालू रहा कि प्रताप पर आक्रमण में अकबर का बेशुमार खजाना खाली हुआ। हल्दीघाटी में भी अकबर हारा तथा दिवेर की लड़ाई में तो इतनी बुरी तरह हारा की मुगल सेना त्राहिमाम कर उठी। इसलिए राणा प्रताप का नाम अधिक प्रचलित हुआ और जन-जन तक ज्यादा पहुंचा। बाद के क्रांतिवीरों ने उन्हें अपना प्रेरक आदर्श माना। इसलिए उनकी मूर्तियां स्थापित करने का प्रचलन हुआ ताकि देश के लोग उनसे प्रेरणा लेते रहें।
अन्य राजाओं की मूर्तियां इसलिए स्थापित नहीं करवाई गई कि ऐसे-ऐसे हजारों सम्राट और राजा गण हैं किस किस की मूर्ति लगाएं किसकी छोड़ें। इसलिए यह एक सामान्य व्यवहार की बात रही। अब जब आप क्षत्रिय सम्राटों और राजाओं को अपनी जाति के शासक बताकर उनकी मूर्तियां लगवाने में लगे हुए हैं तो इस विशेष व्यवहार के कारण क्षत्रियों को भी मूर्तियां लगवाने की बात करनी पड़ रही है।
15- आपको ऊपर बता दिया गया है कि गोचर शब्द के अपभ्रंश से आपका गूजर जाति शब्द है न कि गुर्जर शब्द से। इसी गोचर के कारण आप लोगों ने सरकारी सर्विसेज में आरक्षण भी प्राप्त किया हुआ है।
आशा है आप तथ्यात्मक उत्तर पाकर अवश्य ही संतुष्ट होंगे।
इसके अतिरिक्त और भी प्रमाण हैं:-
1-इतिहास और परंपरा से यह बात सिद्ध है कि क्षत्रियों के सूर्यवंश और चंद्रवंश दो प्रमुख वंश है। खुद सम्राट हर्षवर्धन सूर्यवंशी क्षत्रिय थे जिसके कई प्रमाण हर्षवर्धन के दरबारी कवि बाणभट्ट ने "हर्षचरित" नामक ग्रंथ में दिए हैं जिनमें एक प्रमुख को इस ग्रंथ के चतुर्थ उच्छवास में भी देखा जा सकता है।
2- दिल्ली के चारों ओर 50 किलोमीटर से लेकर 100 किलोमीटर तक राजपूतों के निवास नहीं हैं। जबकि 12वीं सदी के अंत तक वहां क्षत्रिय राजपूतों का ही शासन था। वे वीर योद्धा मुसलमानों से लड़ते-लड़ते बलिदान हो गए। गूजर जाट और अहीर दिल्ली के चारों तरफ भारी मात्रा में हैं जिससे पता लगता है इन्होने लड़ाईयां न लड़कर मुस्लिम शासकों को दूध दही सब्जियां और अनाज की सप्लाई दी।
2- क्षत्रियों के पास श्रीराम के भी बहुत पहले से लेकर आज तक अपनी राजावली और वंशावलियां हैं।
छठी शताब्दी के आरंभ से राजा हरिश्चंद्र प्रतिहार से लेकर वर्तमान तक नागोद मध्य प्रदेश रियासत के प्रतिहार वंशी पूर्व क्षत्रिय राजा के पास लगातार अपने तक वंशावली है जिसमें नौवीं शताब्दी में सम्राट मिहिर भोज का नाम भी सम्मिलित है। वहां के राजकुमार ने राजपूत वर्सेस गूजर केस में ग्वालियर हाईकोर्ट को इस प्रकार का शपथ पत्र 29 सितंबर 2021 को दिया था।
श्रीराम से लेकर वर्तमान तक जयपुर के राजघराने ने अयोध्या मंदिर केस में सुप्रीम कोर्ट में अपनी वंशावली प्रस्तुत की थी।
श्रीराम से लेकर आज तक चौहान राजवंश वंशावली हमारे पास शिलालेख सहित उपलब्ध है। शिलालेख में स्पष्ट तौर पर लिखा गया है कि सूर्यवंश में भगवान राम के पुत्र के वंश में चाहमान का जन्म हुआ। यह शिलालेख एपीग्राफिया इंडिका भाग 29 के पृष्ठ 182 पर देखा जा सकता है। प्रस्तर पर मूल शिलालेख देखना हो तो अजमेर के सरकारी संग्रहालय में देख सकते हैं जिसे मैंने खुद अपनी आंखों से देखा हुआ है।
4- मौर्यवंशी क्षत्रिय सूर्यवंशी थे महाराष्ट्र खानदेश के 1069 ई. के बाघली शिलालेख में यह बात वर्णित है। आज भी मौर्य वंश के क्षत्रिय राजपूत मथुरा आगरा फतेहपुर सीकरी उज्जैन इत्यादि जिलो में बड़ी मात्रा में निवास करते हैं। यद्यपि दलित समुदाय में भी मौर्यवंशी लोग हैं उसका कारण यह है क्षत्रिय और दलित दोनों वर्ग मोरिय क्षेत्र से अन्य नये स्थानों पर निवास करने से पूर्व मौरिय स्थान के नाम से मौर्य कहे गए। तत्कालीन बौद्ध ग्रंथ "महावंश" में ये क्षत्रिय कहे गए हैं । क्षत्रिय सूर्यवंश में से शाक्य वंश शाखा से मौर्यवंशी प्रशाखा निकली।
5- मुजफ्फरनगर गैजेटियर के पृष्ठ 54 पर कैराना क्षेत्र के गूजरों को कृषक तथा ज्यादातर पशु पालन कार्य वाली जाति लिखा गया है। तथा उस क्षेत्र के गूजरों ने गैजेटियर में खुद यह बात मान रखी है कि वे राजपूतों के वंशज हैं।
(वे लोग अपने को जुंडला के राजपूत राजा राणा हरिराज चौहान की गूजरी पत्नी के पुत्र कलसा से कलसेन वंशी चौहान गूजर कहलाते हैं )
इस प्रकार हर तरह से सिद्ध है कि राजपूत ही क्षत्रिय हैं। जिसके अंतर्गत सम्राट मिहिर भोज भी आते है .