महाराणा सांगा (संग्राम सिंह) की जन्म जयंती पर कोटिश: नमन। ऐसी है राणा सांगा की वीरता की कहानी।

क्षत्रिय इतिहास जयंती प्रकाश

Posted by admin on 2023-04-12 12:12:02 | Last Updated by admin on 2024-12-23 00:11:26

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महाराणा सांगा (संग्राम सिंह) की जन्म जयंती पर कोटिश: नमन। ऐसी है राणा सांगा की वीरता की कहानी।

वीर राणा सांगा भारत देश का गौरव थे। इनके खौफ का असर यहाँ तक था कि कोई भी विश्व में इनसे युद्ध करना नहीं चाहता था। मुग़ल बादशाह बाबर भी उनके सामने कांपता था। देश के महान वीर योद्धाओं में से एक थे राणा सांगा। तो आइए, जानते हैं वीर राणा सांगा के बारे में विस्तार से।

विषयसूची

शुरूआती जीवन

वीर राणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल 1482 को मेवाड़ के चित्तौड़ में हुआ था। इनका पूरा नाम महाराणा संग्राम सिंह था। इनके पिता का नाम राणा रायमल था। बचपन से ही राणा सांगा और उनके दोनों बड़े भाई एक साथ रहे, शिक्षा ली। इनके 3 बड़े भाई और थे।

निजी जीवन


राणा सांगा की पत्नी का नाम रानी कर्णावती था. उनके 4 पुत्र थे जिनके नाम रतन सिंह द्वितीय, उदय सिंह द्वितीय, भोज राज और विक्रमादित्य सिंह थे। राणा सांगा का इतिहास हिंदी में ऐसा भी माना जाता है कि राणा सांगा की कुल मिलाकर 22 पत्नियाँ थी।

अपनों से ही उत्तराधिकार के लिए संघर्ष

एक बार कुवंर पृथ्वीराज, जयमल और संग्राम सिंह ने अपनी-अपनी जन्म पत्रियां एक ज्योतिषी को दिखाई। उन्हें देखकर उसने कहा कि गृह तो पृथ्वीराज और जयमल के भी अच्छे हैं, लेकिन राजयोग संग्राम सिंह के पक्ष में होने के कारण मेवाड़ का स्वामी वही होगा। यह सुनते ही दोनों भाई संग्राम सिंह पर टूट पड़े। पृथ्वीराज ने हूल मारी जिससे संग्राम सिंह की एक आंख फूट गई थी। राणा सांगा का इतिहास हिंदी में राणा सांगा ने आँख फूटने के बाद भी भाइयों से युद्ध किया था।

इस समय तो सारंगदेव (रायमल के चाचा) ने बीच-बचाव कर किसी तरह उन्हें शांत किया। सारंगदेव ने उन्हें समझाया कि ज्योतिषी के कहने पर विश्वास कर तुम्हें आपस में संघर्ष नहीं करना चाहिए। इस समय सांगा अपने भाइयों के डर से श्रीनगर(अजमेर) के क्रमचंद पंवार के पास अज्ञात वास बिता रहे थे। रायमल ने उसे बुलाकर अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। 

मेवाड़ के शासक

 

राणा सांगा अपने पिता महाराणा रायमल की मृत्यु के बाद 1509 में 27 वर्ष की आयु में मेवाड़ के शासक बने। मेवाड़ के महाराणा में वे सबसे अधिक प्रतापी योद्धा थे, इनके शासक रहते किसी की हिम्मत नहीं थी कि कोई आसानी से आक्रमण कर कब्ज़ा जमाले। राणा सांगा का इतिहास हिंदी में राणा सांगा बहुत ही प्रतापी शासक और योद्धा थे।

गुजरात के सुल्तान के साथ संघर्ष

सांगा के समय गुजरात और मेवाड़ के बीच संघर्ष का तत्कालीक कारण इडर का प्रश्न था। ईडर के राव भाण के 2 पुत्र सूर्यमल और भीम थे। राव भाण की मृत्यु के बाद सूर्यमल गद्दी पर बैठा किंतु उसकी भी 18 माह के बाद मृत्यु हो गई थी। अब सूर्यमल के स्थान पर उसका बेटा रायमल ईडर की गद्दी पर बैठा। रायमल की अल्पआयु होने का लाभ उठाकर उसके चाचा भीम ने गद्दी पर अपना अधिकार कर लिया था। रायमल ने मेवाड़ में शरण ली जहां महाराणा सांगा ने अपनी पुत्री की सगाई उसके साथ कर दी थी। राणा सांगा का इतिहास हिंदी में जानते हैं उनके आगे के सफ़र के बारे में।

ईडर पर अधिकार

1516 में रायमल ने महाराणा सांगा की सहायता से भीम के पुत्र भारमल को हटाकर ईडर पर पुन: अधिकार कर लिया था। भारमल को हराकर रायमल का ईडर का शासक बनाए जाने से गुजरात का सुल्तान मुजफ्फर बहुत गुस्सा हुआ था। क्योंकि भीम ने उसी की आज्ञानुसार ईडर पर अधिकार किया था। नाराज सुल्तान मुजफ्फर ने अहमदनगर में जागीरदार निजामुद्दीन को आदेश दिया कि वह रायमल को हराकर भारमल को पुनः इडर की गद्दी पर बैठा दे।

निजामुल्मुल्क द्वारा इडर पर घेरा डालने पर रायमल पहाड़ों में चला गए और पीछा करने पर निजामुल्मुल्क को हराया। इडर के आगे रायमल का अनाश्यक पीछा किया जाने से नाराज सुल्तान ने निजामुल्मुल्क को वापस बुला लिया था। इसके बाद सुल्तान द्वारा मुवारिजुल्मुल्क को इडर का हकीम नियुक्त किया गया। एक भाट के सामने एक दिन मुवारिजुल्मुल्क ने सांगा की तुलना एक कुत्ते से कर दी थी। यह जानकारी मिलने पर महाराणा सांगा वान्गड़ के राजा उदय सिंह के साथ ईडर जा पहुंचे। पर्याप्त सैनिक न होने के कारण मुवारिजुल्मुल्क ईडर छोड़कर अहमदनगर भाग गया।

अन्य स्थानों पर अधिकार

सांगा ने इडर की गद्दी पर रायमल को बैठा दिया और एवं अहमदनगर, बड़नगर, विसलनगर आदि स्थानों को लूटता हुआ चित्तौड़ लौट आया था। महाराणा सांगा के आक्रमण से हुई बर्बादी का बदला लेने के लिए सुल्तान मुजफ्फर ने 1520 में मलिक अयाज तथा किवामुल्मुल्क की अध्यक्षता में दो अलग-अलग सेनाएं मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए भेजी। मालवा का सुल्तान महमूद भी इस सेना के साथ आ मिला था किंतु मुस्लिम अफसरों में अनबन के कारण मलिक अयाज आगे नहीं बढ़ सका था और संधि कर उसे वापस लौटना पड़ा था।

दिल्ली सल्तनत के साथ संघर्ष

महाराणा सांगा ने सिकंदर लोदी के समय ही दिल्ली के अधीनस्थ इलाकों पर अधिकार करना शुरू कर दिया था। किंतु अपने राज्य की निर्बलता के कारण वह महाराणा सांगा के साथ संघर्ष के लिए तैयार नहीं हो सका। सिकंदर लोदी के उत्तराधिकारी इब्राहिम लोदी ने 1517 में मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया था। खातोली(कोटा) नामक स्थान पर दोनों पक्षों के बीच युद्ध हुआ जिसमें महाराणा सांगा की विजय हुई।

इस युद्ध में तलवार से सांगा का बायाँ हाथ कट गया था और घुटने पर तीर लगने से वह हमेशा के लिए लंगड़े हो गए थे। खातोली की पराजय का बदला लेने के लिए 1518 में इब्राहिम लोदी ने मियां माखन की अध्यक्षता में महाराणा सांगा के विरुद्ध एक बड़ी सेना भेजी।

मालवा के साथ संबंध

मेदिनीराय नामक एक हिंदू सामंत ने मालवा के अपदस्थ सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय को पुनः शासक बनाने में सफलता प्राप्त की थी। इस कारण सुल्तान महमूद ने उसे अपना प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया था। सुल्तान के मुस्लिम अमीरों को भी मेदिनीराय की बढ़ती हुई शक्ति से काफी ईर्ष्या थी और उन्होंने सुल्तान को उसके विरुद्ध बहलाने में सफलता प्राप्त कर ली थी मेदिनी राय महाराणा सांगा की शरण में मेवाड़ आ गया, जहां उसे गागरोन व चंदेरी की जागीरें दे दी गई।

सन 1519 में सुल्तान महमूद मेदिनीराय पर आक्रमण के लिए रवाना हुआ था। इस बात की खबर लगते ही सांगा भी एक बड़ी सेना के साथ गागरोन पहुंच गए। यहां हुई लड़ाई में सुल्तान की बुरी तरह से पराजय हुई। सुल्तान का पुत्र आसफखाँ इस युद्ध में मारा गया तथा वह स्वयं घायल हुआ। महाराणा सांगा सुल्तान को अपने साथ चित्तौड़ ले गए, जहां सांगा ने उसे 3 माह कैद में रखा था।

बाबर के साथ तनाव

खानवा युद्ध शुरू होने से पहले राणा सांगा के साथ हसन खां मेवाती, महमूद लोदी और अनेक राजपूत अपनी-अपनी सेना ले साथ हो गए। वह हौसले के साथ एक विशाल सेना के साथ बयाना और आगरा पर अधिकार करने के लिए बढ़े। बाबर से बयाना के शासक ने सहायता मांगी। बाबर ने ख्वाजा मेंहदी को भेजा पर राणा सांगा ने उसे शिकस्त देकर बयाना पर अधिकार कर लिया। सीकरी के पास भी मुग़ल सेना को करारी हार मिली। लगातार मिल रही हार से मुग़ल सैनिक में डर चूका था।

अपनी सेना का मनोबल गिरते देखकर बाबर ने बड़ी चतुराई मुसलामानों पर से तमगा (एक प्रकार का सीमा टैक्स) भी उठा लिया और अपनी सेना को कई तरह के लालच दिए, जिससे उसकी सेना में थोड़ी हिम्मत आई। उसने अपने-अपने सैनिकों से निष्ठापूर्वक युद्ध करने और प्रतिष्ठा की सुरक्षा करने का हुकुम दिया। इससे उसकी सैनकों में युद्ध करने को तैयार हो गई।

खानवा का युद्ध

खानवा का युद्ध मार्च 1527 में राणा सांगा और मुग़ल बादशाह बाबर के बीच हुआ था। खानवा के मैदान में दोनों सेनाओं के बीच जबरदस्त खूनी मुठभेड़ हुई। बाबर 2 लाख मुग़ल सैनिक थे, और ऐसा कहा जाता है कि राणा सांगा के पास भी बाबर जितनी सेना थी। राणा सांगा की सेना के पास वीरता का भंडार था और वे बिलकुल घमासानी से लड़े पर बाबर के पास गोला-बारूद का बड़ा जखीरा था। युद्ध में बाबर ने सांगा की सेना के लोदी सेनापति को लालच दिया तो, वो सांगा को धोखा देकर सेना सहित बाबर से जा मिला। लड़ते हुए राणा सांगा की एक आँख में तीर भी लगा था, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की और युद्ध में डटे रहे। इस युद्ध में उन्हें कुल 80 घाव आए थे। उनकी लड़ाई में दिखी वीरता से बाबर के होश उड़ गए थे। ऐसा कहा जाता है सांगा का सर धड़ से अलग होते हुए भी उनका धड़ लड़ता रहा था. राणा सांगा का इतिहास हिंदी में यह लड़ाई पूरे दिन चली थी।

युद्ध के परिणाम

बाबर की सेना यह युद्ध जीत गई थी. वह भले ही यह युद्ध जीती हो लेकिन सांगा की सेना ने उन्हें धुल चटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. लोदी के गद्दारी करने की वजह से राणा सांगा की सेना शाम होते-होते लड़ाई हार गई थी, राणा सांगा को उनकी सेना युद्ध खत्म होने से पहले किसी सुरक्षित स्थान पर ले गई थी। राणा सांगा का इतिहास हिंदी में इस युद्ध से बाबर को पूरे भारत में मुग़ल साम्राज्य स्थापित करने में मदद मिली थी और वह पहला मुग़ल सम्राट भी बना था।

देहांत

युद्ध में सांगा बेहोश हो गए थे जहाँ उनकी सेना उन्हें किसी सुरक्षित जगह ले गई थी। वहां होश में आने के बाद उन्होंने बाबर को हराने और दिल्ली पर विजय प्राप्त करने तक चित्तौड़ नहीं लौटने की शपथ ली। जब सांगा बाबर के खिलाफ एक और युद्ध छेड़ने की तैयारी में थे, तो उन्हें अपने ही साथियों ने जहर दे दिया था, जो कि बाबर के साथ एक और लड़ाई नहीं चाहते थे। जनवरी 1528 में कालपी में उनकी मृत्यु हो गई। उनके देहांत के बाद अगला उत्तराधिकारी उनका पुत्र रतन सिंह द्वितीय हुआ था।

राणा सांगा का इतिहास हिंदी के इस ब्लॉग से आपको उनकी बहादुरी के के बारे में पता चला होगा, हमें ऐसी आशा है। इस ब्लॉग को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि और लोगों को भी राणा सांगा का इतिहास हिंदी ब्लॉग को पढ़ने का मौका मिले। इसी और अन्य तरह के बाकी ब्लॉग पढ़ने के लिए क्षत्रिय पत्रिका  वेबसाइट पर जाकर पढ़ सकते हैं।

:- विकिपीडिया से लिया गया

धन्यवाद

जय राजपुताना

 

 

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