क्यों कहा जाता है भाटियों को उत्तर भट किवाड़ भाटी ? क्षत्रिय पत्रिका

क्षत्रिय इतिहास जयंती प्रकाश

Posted by admin on 2023-06-26 17:02:41 |

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क्यों कहा जाता है भाटियों को उत्तर भट किवाड़ भाटी ? क्षत्रिय पत्रिका

इसे भट्टी वंश भी कहा जाता है। इसकी उत्पति चंद्रवंशीय राजा भाटी से हुई। श्रीकृष्ण ने मथुरा को छोड़कर जब द्वारिको अपनी राजधानी बनाया तो उसके वंशजो ने काठियावाड़, कच्छ, ग्वालियर, मथुरा, , करौली, जैसलमेर तथा गुड़गांव तक राज्य स्थापित किया। यह क्षैत्र यदु की डांग कहलाता है। सन् 623 में इस वंश के राजा रिज की राजधानी पुष्पपुर(वर्तमान- पेशावर) में भी होनी प्रमाणित हो चुकी है। इसके पुत्र गज ने अपने नाम से गजनीपुर(वर्तमान- गजनी) बसाकर अपनी राजधानी बनाया। इसका पुत्र शालीवाहन बड़ा ही वीर पराक्रमी और महान शासक था। शालिवाहल कोट(वर्तमान सियालकोट) इसी शासन का कीर्ती स्तम्भ है।


इसी शालिवाहन का एक पुत्र तो भक्त पूर्णमल था जिसने सन्यास ले लिया था और जो बाद में नौ नाथों मे चौरंगीनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। और दूसरा पुत्र बालंद राज्य का अधिकारी बना। बालंद का पुत्र ही भाटी था। जिसके वंशज भाटी क्षत्रिय कहलाते है।


महाराजा भाटी के शासन काल में विद्वानों में मतभेद है। देवास राज्य(मध्यप्रदेश) से मिले शिलालेख के अनुसार 15 जून 1183 को वहां श्री कृष्ण की 606 वीं पीढी में हुए विजयपाल का राज्य होना प्रमाणित होता है। कई विद्वानों का अनुमान है कि इसी विजयपाल के वंशजो में गजपाल, शालिवाहन तथा भाटी हुए। इस मत के अनुसार भाटी 12 वीं या 13 वीं शताब्दी में होना चाहिए। यह मत ठीक नहीं क्योंकि विजयपाल, शालिवाहन तथा भाटी द्वितिय थे। कई अन्य शिलालेख ऐसे है जिनसे भाटी वंश के मूल पुरूष भाटी का सन् 623 में होना प्रमाणित होता है। इन्होनें सन् 623 ईस्वी में भट्टीक संवत भी चलाया था । इन्होनें भटनेर बीकानेर को बसाया था। तथा गोविंदगढ(विक्रमगढ़) जो उन दिनों में उजड़ा पड़ा था, को बसाकर भटिण्डा, पंजाब रखा। भाटी के पुत्र मंगलराव ने सियालकोट से आकर राजस्थान के उत्तर- पश्चिम भाग और बहावलपुर के क्षैत्र को जीतकर वहा अपना राज्य स्थापित किया। इसके पुत्र केहर जो तन्नो देवी का भक्त होने से तन्नु कहलाता था ने सन् 730 में तन्नौट दुर्ग बनवाया। तणु के पुत्र विजयराव ने देरावल(बहावलपुर) बसाकर तथा लोद्रवों से लोद्रवा छीनकर वहां अपनी राजधानी बनायी।


विजयराव के पुत्र देवराज बडे ही वीर तथा पराक्रमी शासक थे। इन्होनें तुर्की आक्रमणकारियों को कई बार पीछे धकेलकर उत्तर भट किवाड़ भाटी की पदवी प्राप्त की। जैसलमेर के भाटी आज भी इस उपाधि को बडे गौरव से याद करते है। जैसलमेर जैसलदेव ने सन् 1155 में जैसलमेर दुर्ग बनाकर वहीं अपनी राजधानी बनाई। तबसे आजतक यह राज्य जैसलमेर राज्य कहलाता है। इसके बाद जैसलदैव ने पंजाब के पटियाला क्षैत्र को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया। और यहां अपने पुत्र को छोड़कर जैसलमेर लौट गए। जैसलदेव के वंशधर सिंधु जो पटियाल के शासक थे, विजातीय स्त्री से विवाह करने के कारण जातिच्युत हो गए  जिनके वंशज इसी क्षैत्र में सिंधु जाट है। सिंधु जाट के वंशज फूल के तीनों पुत्रों ने नाभा, पटेला तथा जींद को अपनी पृथक- पृथक राजधानी बना ली। ये तीनों रियासत आज तक भी फूलकियां रियासते कहलाती है।


जैसलमेर के भाटी नरेशः-


भाटी , बच्छ राव, विजय राव , मंगल राव, केरा, तनु, विजयराव, देवराज, मूण्ड, वच्छ, दुसाझ, विजयराव(लांजा), भोज, जैसल, शालिवाहन, नेजल, कल्याण, चाचिम देव, कर्ण, जैत्र सिंह, लखणसेन, पुण्यपाल, जैत्रसिंह, मूलराज, रतन सिंह, दूदा, घटसिंह, केहरदेव(1361-1396), लक्ष्मण(1396-1436), वैरसी(1436-1448), चाचिगदैव(1448-1481), देवकर्ण (1481-96), जैतसिंह(1496-1528), लूणकरण (1528-50), मालदेव (1550-61), हरराज (1561-77), भीमसिंह(1577-97), कल्याणदास (1597-1627), मनोहरदास(1627-50), रामचंद्र(1650), सवलसिंह(1650-59), अमरसिंह(1659-1701), जसवंत सिंह(1701-07), बुधसिंह(1707-21), तेजसिंह(1721-22), सवाईसिंह(1722-23), अखेसिंह(1723-61), मूलराज(1761-1819), राजसिंह(1819-46), रणजीत सिंह(1846-64), वेरीसाल(1864-91), शालिवाहन तृतीय(1891-1914), जवाहर सिंह(1914-49), गिरिधर सिंह(1949-50), रघुनाथ सिंह(1950-…), ब्रजराज सिंह (1982) , चेतनय राज सिंह (2021) 


जैसलमेर के ही एक क्षत्रिय ने नाहन राज्य(हिमालय में) स्थापित किया। इस प्रकार जैसलमेर, बीकानेर, गंगानगर, भटिंडा, नाभा, जींद, पटियाला, अम्बाला, सिरमौर(नाहन) तक की यह पेटी भाटी वंश की है। अम्बाला जिले के भाटी तावनी तथा सिरमौर के सिर मौरिया कहलाते है। इस वंश के क्षत्रिय इनके अतिरिक्त अब जोधपुर, बाड़मेर तथा बिहार के भागलपुर और मुंगेर जिलों में बसते है।


भाटी वंश के प्रसिद्ध नौ गढ़ः-


जैसलमेर, पुंगल, वीकमपुर, बरसलपुर, मम्मण, बहट, मारोठ, आसणीकोट, केहरोर

प्रदीप सिंह रावलोट भाटी जैसलमेर


महाराणा प्रताप एवं चेतक का इतिहास | क्षत्रिय पत्रिका जीवनी सार।

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